साक्षात्कार

बाहर से आये लोग, और वे लोग जो यह कि चुनाव हारने के बाद जब मैंने चेतना' में एक जगह कहा है कि बाहर से आकर सैकड़ों वर्षों से वहाँ रह वहाँ के लोगों को संबोधित किया तो पूर्वोत्तर राज्य जैसे असम, त्रिपुरा, रहे थे, साथ ही वहाँ के मूल आदिवासी वहाँ लगभग दस हजार लोग इकट्ठा मणिपुर के साथ भारत के समय-समय लोग थेमैं ट्रेड युनियन से जुड़ीथे। उनमें महिलाओं की संख्या भी पर सांस्कृतिक आदान-प्रदान, जार्ज फर्नान्डिज़ से मिली। युनियन के माध्यम से  आदिवासियों की सभाएं होतीं। जहाँ मैं आदिवासियों से मिलती।  उनके साथ मैं उनके घरों में रही। उनकीजीवन शैली को मैंने अपने में एक तरह से उतार लिया। इस तरह मैं उन सबके बीच लोकप्रिय होने लगी। मेरे विरोध में आवाजें उठने लगीं ।तब मैंने अपने परिवार में कह दिया कि आप तबादला करा कर यहाँ से चले जायें। मेरी कर्मभूमि तो अब यही बन गई है। मैंने पहली लड़ाई आदिवासियों के अधिकारों के लिये 'जल, जंगल, जमीन' की लड़ीदूसरा मुद्दा वे मेरे सामने लाये ‘लाठा, छावन और जलावन' । यह तीनों तरह की लकड़ियां यानि जलाने के लिये और घरों पर छाने के लिये और लाठे के लिये लकड़ियां फ्री मिलती थीं पर सरकार ने उनपर रोक लगा दी थी। इस पर भी मैं उनके साथ खड़ी हुई। मैंने वहाँ से चुनाव लड़ा। मैंने वहाँ के लोगों से कहा कि मैं आपसे धर्म की बात या कहूँ कि मैं धर्मस्थान बनवा दूंगी तो ऐसा कोई वादा नहीं कर सकती पर मैं यह आप सबको विश्वास दिलाती हूँ कि अब मैं यहाँ से जाऊँगी नहींआपके अधिकारों के लिये लडूंगीहलांकि वह चुनाव मैं हार गई । राजा राम (कामख्या नारायण) के विरुद्ध चुनाव में एक मैं ही थी कि जिसकी जमानत बची थी अन्यथा सबकी जमानत जब्त हो गई । मजे की बात यह कि चुनाव हारने के बाद जब मैंने वहाँ के लोगों को संबोधित किया तो वहाँ लगभग दस हजार लोग इकट्ठा थे। उनमें महिलाओं की संख्या भी बहुत थी। जबकि राजा की सभा में केवल पच्चीस लोग थे। अब तक मैं समझ गई थी कि मुझे यहाँ शिक्षा के लिये कुछ करना है। तब मैंने वहाँ आदिवासी और सभी बच्चों के लिये स्कूल बनवाने की लड़ाई प्रशासन से लड़ी और सफल हुई। स्कूल बना वह भी श्रमदान देकर। फिर एक मुद्दा मजदूरों का था कि जमींदार तंग करता है मजदूरी नहीं देता । घूस माँगता है। मैंने महिलाओं को संगठित किया और एक नारा दिया 'घूस नहीं अब चूसा देंगे' साथ ही यह भी बताया कि चूसा नाक पर मारना। नाक पर मारने से तीन महीने की ही सजा होगी। मैंने पानी के मुद्दे पर भी आदिवासियों का साथ दिया।