कविता

राघवचेतन राय (18 दिसंबर, 1944 -- 25 जनवरी,2013)     पैतृक निवास जिला बलिया उ.प्र., मूल नाम राघवेन्द्र कुमार सिंह। लेखकीय नाम राघवचेतन राय की प्रारंभिक शिक्षा पडरौना,बलिया और फैजाबाद के सुदूर गाँव खपड़ाडीह में हुई। इलाहाबाद विश्वविद्यालय से हिंदी में बी.ए और अंग्रेजी साहित्य में एम.ए. की डिग्री ली। गुवाहाटी (आसाम) के कई महाविद्यालयों में 5 वर्ष तक अंग्रेजी साहित्य का अध्यापन कार्य किया .वर्ष  1968 में भारतीय राजस्व सेवा में चयनित हए। आयकर विभाग से मुख्य आयकर आयुक्त और आयकर समझौता आयोग, दिल्ली के अध्यक्ष पद से सेवानिवृत हुए। संवेदनशील, मनन और गंभीर चिंतन वाले राघवचेतन की बचपन से ही साहित्य में अभिरुचि रही। इनके तीन कविता संग्रह-'वह गिरी बेचने वाला लड़का; वंचितों का निर्वाचन क्षेत्र और 'बहनें अब घर में नहीं हैं प्रकाशित और चर्चित हुए। उनके द्वारा अनुवादित अरबी कवि निज़ार कब्बानी, अंग्रेजी कवि सी.एच.सिसन और विश्व के अनेक सुप्रसिद्ध समाजवादी कवियों की कविताओं के अनुवाद सराहे गए। अंग्रेजी लेखों के संकलन की पुस्तक-'Looking back' (India in the Twentieth century) का हिंदी अनुवाद -'भारत की बीसवीं सदी' (पीछे मुड़कर देखते हुए), के नाम से किया जो नेशनल बुक ट्रस्ट, नई दिल्ली से प्रकाशित हुआ है। इन्होंने विभागीय पत्रिकाओं के अलावा पाँच वर्षों तक हिंदी की साहित्यिक पत्रिका का भी संपादन किया।


 


संस्वीकृति


                                               -----राघवचेतन राय 


राय गुनाह मानकर


हकीकत को कुबूल करने के लिए


आज आदमी को कनफुकवा गुरु या पादरी नहीं चाहिए


न धर्मस्थानों का सर्द एकांत अँधेरा


न दोस्तों का आधा समझा बेचारगी का भाव


चित्र चितेरा


न पत्नी की प्रत्याशी श्लाघा


धोखा है सब


मित्र न तेरा,


जीवन में इतना कुछ सच-झूठ घट जाने के बाद


उसको चाहिए तम्बाकू पीती


सहज बोध से अकेली जीती


कोई कद्दावर साँवली-सी नायिका


जो उसके अस्तित्व की


विडंबना को जानकर


छोटे-मोटे और फिर आखिरी


निष्कासन की


बलवती पीड़ा


पहचान कर


उसके लहीम पुरुषत्व को


ठुकराकर


अपने शर्माये नारीत्व को


झुठलाकर


उसको कुबूल करने को


किसी बालक की


तोतली भाषा समझे


खामियों पर


मुस्कुरा दे


लड़खड़ाते पाँव, खोई आँखों को


जहीन चितवन से


सहला दे


फिर से अबोध लोरियाँ


कहानियाँ कहकर


आखिरी दिन


चिर निद्रा में


मीठे सपने देखने के लिए


शमा को हौले से फूंककर बुझा दे


और आदमी को सुला दे।