संपादकीय वर्तमान वैश्विक अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार नववर्ष का प्रवेशांक आपके हाथों में है, हालांकि अलग-अलग समुदाय अपनी मान्यताओं तथा परंपराओं के अनुसार अलग-अलग समय नववर्ष मनाते हैं। हिब्रू मत के अनुसार नववर्ष ग्रेगरी कैलेंडर में 5 सितंबर से 5 अक्टूबर के बीच कहीं पड़ता है, इस्लामी कैलेंडर पूर्णतः चंद्र कलाओं पर आधारित है तथा इसके नववर्ष की तिथियां भी परिवर्तित होती रहती हैं। भारत के पंजाब में नववर्ष बैसाखी उत्सव के रूप में 13 अप्रैल को मनाया जाता है, जबकि नानकशाही कैलेंडर के अनुसार 13 मार्च से नववर्ष प्रारंभ होता है। तमिलनाडु में 15 जनवरी को पोंगल त्योहार के रूप में नए साल का पर्व मनाते हैं। आंध्रप्रदेश तथा कर्नाटक के क्षेत्रों में चैत्र मास से युगादि उत्सव के साथ नववर्ष प्रारंभ माना जाता है। वहीं सिंधी समुदाय चेटीचंड तथा महाराष्ट्र में इसे गुड़ीपड़वा पर्व के नाम से नववर्ष उत्सव मनाते हैं। बंगाली नववर्ष प्रथम वैशाख 14-15 अप्रैल को आता है। मारवाड़ में दिवाली के दिन नववर्ष मनाते हैं, जबकि गुजरात में दिवाली के दूसरे दिन से नया साल प्रारंभ मानते हैं। वैसे हिंदू मान्यताओं के अनुसार चैत्र प्रतिपदा से नववर्ष का प्रारम्भ मन जाता है। इसे मधुमास भी कहते हैं तथा इस महीने को साक्षात विष्णु का महीना भी माना जाता है। विक्रमी संवत भी इसी दिन से शुरू होता है। वस्तुतः इस उत्सव का संबंध प्रकृति परिवर्तन तथा किसानों की खेती के कैलेंडर से सीधे रूप से जुड़ा हुआ है। इस समय प्रायः जलवायु तथा प्रकृति सर्वाधिक समृद्ध तथा मनोहारी स्वरूप में होती है। इन दिनों ना तो बरसात का सर्वत्र व्याप्त कीचड़ होता है और ना ही गर्मियों की धूल की आधियां। जंगल हों या बाग-बगीचे सभी जगह पेड़-पौधे आपस में मानो प्रतिस्पर्धा करते हुए नव-पल्लव, फूलों और मंजरियों से लद जाते हैं। नदी-नाले तालाबों में बरसात की गाद बैठ जाती है और जल निर्मल हो जाता है। किसानों की साल भर की कमाई खलिहानों में सुरक्षित पहुंच जाती है। उत्सव के लिए इससे बेहतर और वातावरण भला क्या हो सकता है। किंतु वर्तमान में भौतिकवाद की मार से हमारे लोकरंजन के इन प्रकृति पवों की आभा और इनमें निहित जीवन रस निरंतर छीजता जा रहा है। दूसरी तरफ वैश्विक बाजारवाद ने हमारे त्यौहारों- पवों का पूरी तरह से बाजारीकरण कर दिया है। सो आज इन लोक पर्वो- त्यौहारों की मूल आत्मा पूरी तरह नदारद है, और यह केवल औपचारिकता, दिखावा और भोगवाद का उत्स बन कर रह गए हैं। चूंकि मनुष्य तो स्वभाव से ही उत्सवधर्मी रहा है,सो भारत की प्रमुख जनजातियां गोंड,मुरिया,माड़िया, धुरवा आदि भी अपने नववर्ष के अवसर पर अपना प्रमुख पर्व 'चौतरई' मनाती हैं। यद्यपि इनके इस त्यौहार के नाम तथा उन्हें मनाने की पद्धतियों में क्षेत्र तथा समुदाय के अनुसार थोड़ी-थोड़ी भिन्नता पाई जाती है, जैसे कि दक्षिण बस्तर में इसे 'मरका पडूम' अथवा 'मरका पोहलाना' कहते हैं, जबकि धुरवा जनजाति इसे 'मेंदूल तिंदाना' कहती है, नाम चाहे जो भी हो, किंतु मूल अवधारणा में समानता है। दरअसल वनवासी समुदाय अपने को वनों का राजा मानते हैं, जो कि हैं भी, और उनके लिए के यह ऋतु, अपने खजाने को समृद्ध बनाने अर्थात बिना वनों को नुकसान पहुंचाए वनोपज यथा चार चिरौंजी, इमली, साल बीज, आंवला, हर्रा, बहेड़ा, नाना प्रकार की वन औषधियो, कंद-मूल के संग्रहण की होती है। होती है। इसी अवधि में पहाड़ों इसी अवधि में पहाड़ों पर होने वाली छिटपुट मोटे अनाजों की खेती जैसे कि रागी, कुलथी, कोदो, कुटकी आदि की फसल तैयार हो जाती हैं। इस प्रकार जनजातीय समुदायों के लिए भी यह त्योहार प्रकृति के लोकरंजक, स्वरूप तथा आर्थिक समृद्धि का स्वागत -पर्व होता है। जिसमें गांव में रहने वाले सभी समुदाय के लोग समान रूप से भाग लेते हैं केवल मनुष्य ही नहीं इनके पर्यों में पेड़-पौधे, वनस्पतियों, पशु-पक्षियों को भी शामिल किया जाता है, इतना ही नहीं यह प्रकृति के समस्त जड़-जंगम को विभिन्न देवी-देवताओं के मिथकीय स्वरूपों को भी अपने पर्व में अत्यंत आदर भाव से सम्मिलित करते हैं। यह बेहद चिंताजनक है कि, धीरे-धीरे इन जनजातीय समुदायों के लोक पर्व-त्योहारों में भी मेला, मड़ई, जात्रा आदि के बहाने यह सर्वविनाशी बाजार कई छद्म रूप धारण कर इन्हें भी अपने अजगरी पाश में जकड़ने लगा है। यह प्रक्रिया अगर ऐसे ही जारी रही तो इन लोकपवों का भी दम घुटने में अब ज्यादा वक्त नहीं बचा है। अभी भी वक्त है कि हम चेत जाएं और अपनी इन बची-खुची परंपराओं, तीज-त्यौहारों, तथा इनमें सन्निहित सदियों के संचित परंपरागत ज्ञान के भंडार को अपनी आने वाली पीढ़ी के लिए सहेज लें। आपकी पत्रिका ककसाड़ की टीम इसी प्रयास आप सभी के सहयोग से विगत कई वर्षों से कटिबद्ध जुटी हुई है, हम अपने इस महती कार्य में कितना सफल हो पाए हैं यह तो हमें आप ही बता पाएंगे। तो एक बार फिर परीक्षा की कॉपी आपके हाथों में है, कृपया आप इसे जांचे और जो भी अंक आप देंगे, उसका हमें बेसब्री से इंतजार रहेगा। इसके साथ ही आपके पत्रों, ई-मेल, के इंतजार में आपका साथी...! आपका SUNDING राजाराम त्रिपाठी मो.: 094252-58105
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